श्री नीमच माता देवी का मन्दिर बहुत हि विख्यात मन्दिर है। माता की मूर्ति ‘ऊंचाई में 56′ और चौड़ाई में 23’ है। भीतरी मंदिर के दूसरी ओर एक अन्य मूर्ति जो की ऊंचाई में 20.1 है स्थापित है । गणेश मूर्ति के प्रस्ताव का 22.1 और 12.1 उच्च चौड़ा है। तीन पश्चिम की ओर देखते हुवे शेरों की भी मुर्तिया है।
मन्दिर से आकर्षक द्रश्य :-

मंदिर की वास्तुकला एवम महत्वपूर्ण वास्तु लक्षण:
मंदिर फतेह सागर झील के तट पर एक पहाड़ी पर बनाया गया है। मंदिर के बाहर की ओर एक शिखर है भीतरी मंदिर मे हवन के लिए एक हवन कुंड है। मंदिर एक उच्च शीर्ष पर है और यह इमारत एक कष्टकारक ऊंचाई पर है। इस ऊंचाई ने मंदिर को अत्यंत आकर्षक बना दिया है अन्यथा मंदिर की वास्तुकला आम है।
महत्वपूर्ण वास्तु लक्षण:
गर्भगृह में नीमच माता की मूर्ति प्रतिष्ठापित है।
यह मंदिर हिन्दुओं की शक्ति संप्रदाय के अंतर्गत आता है।
निर्माण की सामग्री:
पत्थर, चूना

मंदिर के धार्मिक पहलु:
सर्वाधिक ऊंचाई के कारण मंदिर वास्तव में भव्य है। इसकी सुंदरता के आश्चर्य के साथ साथ इस मन्दिर को मेवाड़ का वैष्णो देवी मंदिर भी कहाँ जाता है। लोग देवी की चमत्कारी शक्ति में एक मजबूत विश्वास रखते है। यह इसलिए, लोगों की आस्था का केंद्र भी है। स्थानीय लोग और पर्यटक बड़ी संख्या में हर दिन मंदिर में आते हैं।
मंदिर के अद्वितीय विशेषताएं:
देवी की राजपूतों द्वारा विशेष रूप से पूजा की जाती है। अन्य सभी समुदायों को भी देवी के लिए एक बड़ी श्रद्धा है। सभी देवी से उनकी सुख शांति की प्रार्थना करते हैं।
मंदिर में होने वाले प्रमुख त्योहार
त्योहारों के दिनों में नीमच माता (जिन्हे अंबाजी के रूप में भी जाना जाता है) का पूजा समारोह महान उत्साही पक्ष के साथ आयोजित किया जाता हैं। नवरात्री के दिनों में और अन्य जैसे की दिपावली ,दशहरा और अन्य धार्मिक त्योहारो के दिन मन्दिर में विशेष पूजा अर्चना रखी जाती है। मंदिर की मनोरम सुंदरता आगंतुकों की भीड़ को ओर बढ़ा देती है।

मंदिर की परम्पराए:-
मंदिर के खुलने और बंद होने का समय निश्चित हैं। पूजा शाक्त संप्रदाय परंपराओं के अनुसार निर्धारित कि जाती है। आरती और भजन गाए जाते हैं और दीये जला कर देवी की आरती की जाती है। और इस पूजा समय में उपस्थित होना भक्त अपनी किस्मत समझते है ।
महत्वपुर्ण जानकारी :-
स्थान: फतेह सागर के पास नीमच माता जी
जिला: उदयपुर
मन्दिर निर्माण वर्ष : 1652-1680
निकटतम हवाई अड्डा: डबोक (25 कि.मी.)
निकटतम रेलवे द्वारा। स्टेशन : उदयपुर (6 किमी)
मंदिर निर्माण महाराणा रणजीत सिंह (प्रथम ) द्वारा करवाया गया।